डॉ हरदेव सिंह : हड्डी की हर समस्या का पूर्ण "निदान"
टोटल नी रिप्लेसमेंट- "टोटल नी-रिप्लेसमेंट एक ऐसी शल्य क्रिया है जिसमे घुटनें का घिसा हुआ या क्षतिग्रस्त हिस्सों को बदल दिया जाता है.जोड़ की विकार युक्त सतहें निकाल दी जाती है.और उसकी जगह कृत्रिम जोड़ लगा दिया जाता है.मार्केट में कई तरह के कृत्रिम घुटनें होते है.सर्जन द्वारा आपके लिए सर्वोत्तम कृत्रिम घुटनें के जोड़ का चयन कर लगाया जाया है."
"उजाला सिग्नस सेंट्रल हॉस्पिटल हल्द्वानी में कार्यरत अनुभवी डॉ हरदेव सिंह" ने बताया कि नी-रिप्लेसमेंट से अर्थराइटिस के पुराने रोगियों को भी ठीक किया जाता है. इस आपरेशन की सफलता का प्रतिशत बहुत अधिक है जो मरीज चलने-फिरने में भी असमर्थ थे, इस आपरेशन से कई किमी तक आराम से चल सकते हैं. आपरेशन के बाद न तो घुटने में दर्द होता है और न ही बैठने-उठने में कोई परेशानी होती है. जब घुटने का दर्द दूर करने के सभी विकल्प फेल हो जाते हैं तो यह आपरेशन ही इकलौता विकल्प होता है.लेकिन इसके बाद आपको कुछ सावधानियां बरतनी होंगी.जैसे कि चिकित्सक की सलाह के अनुरूप कसरत करें.छोटी-छोटी बातों पर ध्यान रखकर दर्द से निजात पाई जा सकती है.
हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी- "हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी एक शल्य क्रिया है.जो कुल्हे के जोड़ के घिसे या क्षतिग्रस्त हिस्सों को बदलने के लिए की जाती है.यह शल्य क्रिया दर्द से निजात दिला सकती है.और आपके कुल्हें की गतिशीलता बढ़ा सकती है.
अनुभवी डॉ हरदेव सिंह द्वारा हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी भी की जाती है. हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी (Hip Replacement Surgery) उन लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, जो कूल्हे की समस्या से परेशान रहते हैं.इनमें कूल्हे से संबंधित कई सारी समस्याएं जैसे कूल्हे की हड्डी में दर्द का होना, कूल्हे की हड्डी का टूटना, कूल्हे की हड्डी का खराब होना इत्यादि का भी खतरा बढ़ जाती है। ऐसे में इन समस्याओं का समाधान के लिए बेहतर विकल्प की जरूरत पड़ती है.
हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी को कराने के कुछ मुख्य लाभ -
1- चलने में दर्द का न होना 2-दिल संबंधी बीमारियों के जोखिमों को कम करना 3-लंबे समय तक सक्रिया रहना 4-सामान्य गतिविधियों को कर पाना 5-कूल्हे की हड्डियों की कार्यक्षमता में सुधार करना
कंधे की आर्थोस्कोपी - कंधे की आर्थोस्कोपी एक ऐसी प्रक्रिया है.जो कंधे के जोड़ों के क्षतिग्रस्त हिस्सों को ठीक करने के लिए की जाती है.यह सर्जिकल प्रक्रिया कम छेदकर या की होल द्वारा की जाती है इसलिए रिकवरी की अवधि भी कम होती है.कंधे के गंभीर दर्द को कम करने के लिए यह सामान्य उपचार है.
कई लोगों का कंधा बार-बार खिसकने की समस्या होती है. ऐसे लोगों का उपचार आर्थोस्कोपी सर्जरी से किया जा सकता है. इस सर्जरी में पेशेंट को छोटा चीरा लगाया जाता है. शरीर के दूसरे हिस्से की मसल्स का पार्ट लेकर क्षतिग्रस्त लिगामेंट की जगह लगाकर बायो स्क्रू लगा दिए जाते हैं। ये स्क्रू इस तरह के बने होते हैं कि कुछ समय बाद गल जाते हैं. इससे शरीर में कोई नुकसान नहीं होता.
घुटने के चोट की आर्थोस्कोपी- आर्थोस्कोपिक सर्जरी किसी भी जोड़ के लिए की जा सकती है जैसे कि घुटना, कूल्हा, एड़ी, कोहनी आदि. आमतौर पर इस तकनीक का सबसे ज्यादा प्रयोग घुटने की सर्जरी में किया जाता है जैसे- घुटने की गादी (मेनिस्कस) चोटग्रस्त होने पर इसका उपचार किया जा सकता है. घुटने के लिगामेंट में चोट/ टूट जाने पर मरीज के घुटने में लचक, सूजन व दर्द बना रहता है. इन लिगामेंट (क्रुशीएट व अन्य) की सर्जरी एवं बदलाव किया जा सकता है. लूज बॉडीज (जोड़से अलग हुए हड्डी के टुकड़े) एवं फोरन बॉडीज) (बाहरी तत्व) आर्थोस्कोपी से निकाले जा सकते हैं. विभिन्न प्रकार की जटिल बीमारियों की पहचान के लिए उपयोग होने वाली बायोप्सी तकनीक भी आर्थोस्कोपी से कर सकते हैं.
घुटना एक ऐसा जोड़ है, जिसमें हड्डियों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है लिगामेंट, जो एक्स रे में दिखता नहीं है. इसलिए एक्स रे का सामान्य दिखने का आशय घुटने का सामान्य होना जरूरी नही है. लिगामेंट घुटने को स्थिरता देते है और घुटने की चाल को संयमित रखते हैं. इनके टूटने से घुटने में अस्थिरता व घुटने का मूवमेंट खराब हो जाता है. लिगामेंट रप्चर ( चोट ) जिसे देख पाना एक्स रे से भी संभव नहीं है, तो इस का यह मतलब नहीं है कि उसे देखा नहीं जा सकता है. एमआरआई नामक जांच से लिगामेंट को देखा जा सकता है. यह जांच बारीक चोटों को सटीक ढंग से चित्रित कर देती है।
घुटने में मुख्यत: छह महत्वपूर्ण लिगामेंट होते हैं. इनमें से कुछ का इलाज बहुत कम प्रयास से संभव हो जाता है. जैसे ब्रेस, प्लास्टर। आधे से भी अधिक घुटने के लिगामेंट की चोटों को आर्थोस्कोपिक सर्जन ऑपरेशन के बगैर ठीक कर देता है. केवल कुछेक लिगामेंट फ्रैक्चर के मरीज को आर्थोस्कोपिक इलाज की आवश्यकता पड़ती है.
स्पाइन सर्जरी - स्पाइन सर्जरी उन लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, जो रीढ़ की समस्या से पीड़ित रहते हैं.या रीढ़ की हड्डी में फैक्चर हो जाता है. डॉ हरदेव सिंह द्वारा देखे गये 'स्पाइन सर्जरी ' से रीढ़ की समस्या से परेशान मरीजों को लाभ मिल रहा है. इसके अलावा सर्वाइकल से पीड़ित व्यक्ति इससे निजात पाने के लिए दवाई और व्यायाम करता है, लेकिन जब उसे इससे कोई लाभ नहीं मिलता है, तब उसके लिए स्पाइन सर्जरी सहायक साबित हो सकती है. यहीं नहीं इसके अलावा स्पाइन ट्यूमर को निकालने,पीठ के निचले हिस्से में असहनीय दर्द को कम करने के लिए स्पाइन सर्जरी अनुभवी डॉ हरदेव सिंह द्वारा की जाती है.
स्पोर्ट्स इंजरी के लिए पीआरपी इंजेक्शन (प्लेटलेट रिच प्लाज्मा) - ये एक थैरेपी है जिसे प्लेटलेट्स-रिच प्लाज्मा थैरेपी के नाम से जाना जाता है इस प्रक्रिया में जिस व्यक्ति का उपचार किया जा रहा है उसी का रक्त लिया जाता है. इसमें एक प्रक्रिया के जरिये प्लेटलेट्स के साथ प्लाज्मा ट्यूब में एकत्र कराए जाते हैं. इस थैरेपी का आधार यह है कि प्लेटलेट्स घावों के भरने में मुख्य भूमिका निभाते हैं. पीआरपी इंजेक्शन का असर 4-6 हफ्ते बाद ही दिखता है.यह इलाज किसी भी आयु वर्ग के मरीजों के लिए लाभकारी है क्योंकि इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता.
पीआरपी इंजेक्शन इंजेक्शन से टेनिस एल्बो, घुटने की कटोरी का दर्द,कोहनी के अंदर की तरफ दर्द,जांघ के पीछे मांशपेशियों में खिंचाव,एडी में दर्द आदि से निजात पाया जा सकता है. स्पोर्ट्स इंजरी के मामलों में सही यह होता है अगर शुरू में ही हम चोट लगने पर डॉक्टर से सलाह ले लेते है तो आप समस्या से छुटकारा पा सकते है और अगर चोट गंभीर होती है तो आपके लिए सर्जरी करवाना ही अंतिम विकल्प होता है ऐसा होने पर ओर्थोस्कोपी सर्जन की मदद ले सकते है.
स्पोर्ट्स इंजरी - स्पोर्ट्समैन के लिए स्पोर्ट्स इंजरी होना कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि वो खेलते है तो बहुत सारी चूक भी करते है और कई बार हलकी फुलकी चोट या मोच का आ जाना स्वाभाविक है लेकिन इस इंजरी को अक्सर इग्नोर कर देते है.जिससे लिंगामेंट इंजरी,वजन उठाने में समस्या होना,घुटने और टखने में चोट या मोच,मांसपेशी में खिंचाव की समस्या होना आम बात है.ध्यान देने योग्य बात है कि " स्पोर्ट्स इंजरी खेलनें के दौरान हो ऐसा जरुरी नहीं है.रोजमर्रा के कार्यो को करते समय भी इंजरी हो सकती है.छोटी-मोटी चोट या खिचाव आ जाता है.जिसे हम अक्सर अनदेखा कर देते है.लेकिन बाद में कुछ समय बाद छोटी सी दिक्कत बड़ी हो जाती है.
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